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रजनीकर
नशा नहीं मुझे मदिरा का मैं नैनों से पीता हूँ हाँ इन्हीं अँखियो के ज़रिये मैं तन्हा जी लेता हूँ, ना होते हुए भी सामने सर्वत्र उसे ही पाता हूँ बार हर बार मैं ग़लती यही दोहराता हूँ..
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