पता नहीं तू ये सब बर्दाश्त कैसे करती है?
घर वालो के ताने,
समाज का दबाव,
अपनों के धोखे,
तेरे सारे सपनों का तेरी आँखों के सामने टूटना
तुझे रोता हुआ छोड़ के तेरे अपनों का दूर जाना
तेरी कामयाब पे तूजे खरी खोटी सुनाना
लाखो सपने आँखों में रख के चार दिवारो में केद रहना
तुझमें काबिलियत होते हुए भी लोग के ताने सुनना
पूरी सिद्दत से जिसको चाहा ,
उसिका तेरे चरित्र पर उंगली उठाना
कैसे होता है बर्दाश्त??
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