वो बेटी जो नहीं राही उसका नाम पुकारे सब!
लेकिन जब वो जिंदा थी क्या देखा किसी ने उसका गम
वो घुटती रही और मरती रही उसकी सिसकियां घर भरती रही!
रोज़ कितनी निर्भया मरती है रोज़ कितनी प्रियंका जलती है!
तब क्यों मौन रहते हैं सब?
सुनी ना पुकार किसी ने एक उसकी जेब वो मदद की लिए चिलाई थी
कहा बटी अब यही तेरा घर है तू यह बयेहा कर आई थी।
क्या वो नहीं था तिरस्कार उसका।
क्या वो नहीं था बलात्कार उसका।
वो चुप रही और सहती गई रोज़ घुट घुट कर मरी फिर भी खुद से कहती गई
यही घर मेरा अपना यही लोग है मेरे अपने तो क्या हुआ जो टूटे गए मेरे सपने…।।।।।
फिर एक दिन वो खामोश हो गई।।
इस झूठी दुनिया को अलविदा कहा और गहरी नींद में सो गई.
पूछा खुदा से उसने जा कर क्यों बेटी मुझे बनाया था?
सब सही और चुप रही फिर क्यूं इतना सितम ढाया था…
दरिंदे वो हैं या हम सब हैं जो मोमबतिया तब जलते हैं
जब देश की बेटी मरती है हम आंसू तब बहते हैं!
क्यों बेटी ही सब कुछ सहे! क्यों बेटी ही हमेशा चुप रहे?
आओ मिल कर साथ चले हर चिड़िया को आज़ाद करें;
वो उड़े खुले आसमान में…..
ना फिर कोई मोम्बत्ती जले!
ना फिर कोई मोमबती जले!🙏🏻
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