पत्नी और बच्चों को शाॅपिग माॅल के बाहर उतार कर शर्मा जी गाड़ी पार्क करने के लिए जगह ढूंढने निकल पड़े। करीब एक किलोमीटर का चक्कर उन्होंने लगा लिया , पर कहीं गाड़ी पार्क करने की जगह नहीं मिल रही थी तभी उसकी पत्नी का फोन आया, ‘ इतना समय लगता है गाड़ी पार्क करने में?’
‘अरे गाड़ी पार्क करने की जगह खाली नहीं है। पता नहीं इतनी गाड़ियां कहां से आ जाती है ! मैं आ रहा हूं, कहीं और चलते हैं ,वहीं से शॉपिंग कर लेना।’ गुस्से में बोलते हुए शर्मा जी ने फोन काट दिया।
कितना शौक से मिसेज शर्मा यहां शॉपिंग के लिए आई थी अब ट्रैफिक की वजह से उन्हें बैरंग लौटना पड़ रहा था। मनमाफिक माॅल से शाॅपिग न कर पाने का मलाल उनके चेहरे से साफ झलक रहा था।
शर्मा जी को दो दिन पहले की बात याद आ गई, जब उन्होंने अपने पड़ोस में रहने वाले गुप्ता जी का मजाक उड़ाया था, ‘क्या गुप्ता जी !पैसा बचाने के लिए आप अपने दोस्त की गाड़ी में जाते हैं।’
तब गुप्ता जी ने बड़ी शालीनता से ज़बाब दिया था ,
‘ इससे एक नहीं तीन फायदे हैं ,पहला पेट्रोल बचता है।दूसरा ,सड़क पर ट्रैफिक कम होती है और तीसरा पाॅलुएशन भी कम होता है ।जब तीन- तीन फायदे हैं तो शेयरिंग में क्या बुराई है। और हां आपके जानकारी के लिए बता दूं कि एक सप्ताह मैं अपनी गाड़ी ले जाता हूं और एक सप्ताह मेरा दोस्त गाड़ी ले जाता है ।’
तब भी शर्मा जी हंसते हुए बोले थे, ‘मुझे तो ये सब नहीं जमता।’
और आज उन्हें गुप्ता जी की बात सही लग रही थी।
पत्नी और बच्चों को शाॅपिग माॅल के बाहर उतार कर शर्मा जी गाड़ी पार्क करने के लिए जगह ढूंढने निकल पड़े। करीब एक किलोमीटर का चक्कर उन्होंने लगा लिया , पर कहीं गाड़ी पार्क करने की जगह नहीं मिल रही थी तभी उसकी पत्नी का फोन आया, ‘ इतना समय लगता है गाड़ी पार्क करने में?’
‘अरे गाड़ी पार्क करने की जगह खाली नहीं है। पता नहीं इतनी गाड़ियां कहां से आ जाती है ! मैं आ रहा हूं, कहीं और चलते हैं ,वहीं से शॉपिंग कर लेना।’ गुस्से में बोलते हुए शर्मा जी ने फोन काट दिया।
कितना शौक से मिसेज शर्मा यहां शॉपिंग के लिए आई थी अब ट्रैफिक की वजह से उन्हें बैरंग लौटना पड़ रहा था। मनमाफिक माॅल से शाॅपिग न कर पाने का मलाल उनके चेहरे से साफ झलक रहा था।
शर्मा जी को दो दिन पहले की बात याद आ गई, जब उन्होंने अपने पड़ोस में रहने वाले गुप्ता जी का मजाक उड़ाया था, ‘क्या गुप्ता जी !पैसा बचाने के लिए आप अपने दोस्त की गाड़ी में जाते हैं।’
तब गुप्ता जी ने बड़ी शालीनता से ज़बाब दिया था ,
‘ इससे एक नहीं तीन फायदे हैं ,पहला पेट्रोल बचता है।दूसरा ,सड़क पर ट्रैफिक कम होती है और तीसरा पाॅलुएशन भी कम होता है ।जब तीन- तीन फायदे हैं तो शेयरिंग में क्या बुराई है। और हां आपके जानकारी के लिए बता दूं कि एक सप्ताह मैं अपनी गाड़ी ले जाता हूं और एक सप्ताह मेरा दोस्त गाड़ी ले जाता है ।’
तब भी शर्मा जी हंसते हुए बोले थे, ‘मुझे तो ये सब नहीं जमता।’
और आज उन्हें गुप्ता जी की बात सही लग रही थी।
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