दौर

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    27th October 2024 | 8 Views | 0 Likes

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    अच्छा बुरा सब दौर देखा,

    यह भी यूँ गुजर जाएगा

    जीवन की अविरल गति में,

    कुछ भी नहीं टिक पाएगा

    शाश्वत नहीं है कुछ यहाँ

    बदलाव होना निश्चित है

    समझ पाया सहज है वो

    जो न समझा विस्मित है

    समय के अनुरूप हमको

    ढल जाने में सार है

    ढल न पाये तो दुखी मन

    ज़िंदगी बेकार है

    नियति का जो खेल है

    वो खेल होकर के रहेगा

    वक़्त के दरिया में जो भी

    बहना है बहकर रहेगा

    लेकिन ये सब सोचकर के

    हाथ धरे नहीं बैठना है

    कर्म हमें करते रहना है

    भाग्य भरोसे नहीं बैठना है

    कर्म से क़िस्मत पलटते

    देखा है कई बार हमने

    सिलसिला जारी रहे ये

    इसको नहीं देना है थमने

    कलम से

    प्रेमसिंह “गौड़”

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