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यह कविता मेरी स्वरचित है ।।
हर घर का एक महकता गुलाब
जैसे मेरे घर मे हैं
नाम है जिसका श्री
नटखट पर कोमल हृदय
और रखे सन्मान है
हर घर मे एक चादनी
बिखरे अपने हसी से
चंद्र सी किरणे जैसे मेरे घर मे है
नाम है उसका श्री
कभी बन जाती दादी वो
कभी वो बनती माँ
हर छोटी बड़ी बातों का
रखती हैं ख्याल जो
बचपन उसका निराला है
पर प्रेम की वो अमृत प्याला है
हर घर का एक चमकीला तारा
जैसे मेरे घर मे है
नाम है उसका श्री
उसके अद्भुत संसार का
सूरज है माता पिता
जीवन के सप्तम पड़ाव पे
सुनती है जो राधा कृष्ण की कथा
जाना है जिसे बृंदाबन्
बनकर कान्हा की दीवानी
कैसा ये उसका चाहत है
छोड़ कर जो जाना चाहे
अपने माता पिता का घर आँगन
हर घर की एक खुसबू कलि है
जैसे मेरे घर मे है
नाम है उसका श्री।।