प्यारा सा झूठ !!

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3rd July 2024 | 10 Views | 0 Likes

Disclaimer from Creator: यह कविता बदलते समय और समय के साथ बदलते रिश्तों की और इशारा कर रही है

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जैसे – जैसे बीत रहा समय

वैसे – वैसे समझ रहा हूं मैं,

वो बचपन में कैसे दिलासा देते थे,

अपने झूठे शब्दों का,

लेकिन सत्य यही निकला वो टूटा बांध सांधते 

थे भावनाओं का,

वो वक्त हसीन‌ था‌ सब कुछ काला हो कर 

भी रंगीन था ,

उस क्षण दगा कोई कर गया

खुशियां सारी निगल गया

यह बोलकर कि आगे बड़ा हसीन बनूंगा

कमबख्त वक्त निकल गया,

अब आसमां तारों से भरा

बगीचा फूलों से हरा,

लेकिन वो यार कहां, माना‌ बोझ है सिर पर उनके 

कभी कभी मिल लेते तो मन का बोझ निकल जाता,

हम‌ यूं तो नहीं आज मिले कल बिछड़ गए

तुम ऐसे भूल गए जैसे जिंदगी के युद्ध छिड़ गये

क्या तुम भी वक्त दोहराओगे

क्या तुम भी एक प्यारा सा झूठ बोल कर 

चले जाओगे,

चले जाओगे 

Prithvi Sharma

@Prithvi-Sharma

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