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मां का वचन

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मेरी ये कविता स्वंतत्रता दिवस के मौके पे एक मां को समर्पित है, जिसने देश को आजादी के लिए अपने बेटों को देश पे समर्पित किया। है उस मां के लिए ये कविता है, जिसने अपनी कोख उजाड़ कर,

तू मेरी सुन, मैं तेरी सुनूं

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ये कविता एक औरत की है, जो अपने पति की उदासी से परेशान होकर , उससे अपनी परेशानी बताने को का रही। वो औरत अपने पति की दुख की वजह जानना चाहती है, और उसका साथ देना चाहती है।