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Thumbnail जैसी ज़िंदगी !
Thumbnail जैसी ज़िंदगी - इस कविता में उस धोखे की बात है, जो हम ख़ुद को रोज़ देते हैं, अंदर से ना सही, पर बाहर से सब सँवरा रहे, अंदर चाहे कुछ भी हो लेकिन Thumbnail गज़ब का होता है.
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