खोल के बाहें अम्बर , जब पानी बरसाता है
घनघोर घटाए लेकर , जब आसमान आता है
मानो जुल्फ धरा की , खुल के हवा मे लहराती है
हर्षाता कोना कोना , धरती दुल्हन बन जाती है
इंद्रधनुष मनभावक , जैसे ताज़ हो पहना कोई
हर पाषाण धुला पर्वत का , मानो हीरो का गहना कोई
श्रंखला पर्वत वाली , टीका बन जाती है
चोटी तक फैली हरयाली , मस्तक खूब सजाती है
दुल्हन बन जाती है , धरती दुल्हन बन जाती है
कोलाहल करते झरने , शगुन के गीत सुनाते है
मृदंग करते मोर , मस्ती मन मे जगाते है
कोयल की मीठी बोली , शहनाई बजाती है
गिरती बूंदो के संग , धरती झूम के गाती है
दुल्हन बन जाती है , धरती दुल्हन बन जाती है
मोती सी लगती है , पत्तों पे ठहरी बुँदे
बूंदो के हवाले करती है , धरा खुद को आंखे मुंदे
फूलो की बिखरी चादर , आँचल बन जाती है
सागर से टकराती नदिया , जैसे चुड़ी खनकाती है
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