खोज रही अपने रथ का पथ,
किस ओर उसे ले जाँऊ !!
अंधकार के मार्ग पर
सफलता का पुंज पाँऊ ||
डर लगता है, चकाचौंध के
अंधियारे में कही भटक न जाँऊ ॥
विस्मृत होकर देखती हूं,
कौन दिशा है, कहाँ राह है।
पथ प्रशस्त करे जो, ऐसी चाह कहाँ है।
स्वमन से पूछती प्रश्न बार-2,
इस दुविधा का अन्त कहाँ है।
प्रश्नों की बौछारों पर कहता मन,
कर्म तुम्हारा रथ का पथ
अथक परिश्रम प्रकाश पुंज ।
सतपथ पर आगे बढना,
घोर निराशा मे भी डटना !
असफलता में भी सफलता की राह दुंढना
मात्र उद्देश्य रहे जीवन में,
अंतिम सत्य तक संघर्ष करना !! संघर्ष करना !!
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