लौट आ, मेरे मानव, अब लौट आ
अपने खेत खलियानों में लौट आ
ये देव और दानव के रूप त्याग
अब तू लौट आ ।
बस मेरे मानव लौट आ ।
वो धरती, वो वन,
वह तेरे संग खेलते शावक
सब तुझे पुकार रहे
ओ मेरे मानव लौट आ ।
तू ही राम-रहीम
तू ही कृष्ण-करीम ।
तू ये मंदिर, मस्जिद,
गुरुद्वारे, गिरजाघर सब की
दहलीज पार कर
अब तू लौट आ ।
उन खलियानों में
जहाँ भूल जाते महजबों के रंग
बस कर्म में ही बस जाते मन
रहते हम मद, मस्त, मगन ।
जहाँ सखा की थाली
मालपुंओं से भर
संतुष्ट हो जाते हमारे मन
उस चमन में लौट आ ।
ओ मेरे मानव, लौट आ ।
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