सरसराती हवा का झोखा आया,
संग अपने ये बारिश लाया.
बूंदे गिरती चाँदी सी लगती,
ओले बनकर मोती सी दिखती.
कड़कती गर्मी में बूँदे जब गिरती,
अमृत समान है यह झलकती.
वही बूंदे जब सर्दी आती,
विष समान है यह कहलाती.
आखिर क्यों बदल जाती है,
उसी समाज की विचार धारा?
क्यों उल्लास शोक बन जाए,
जब यही है उनका एकमात्र सहारा?
हाय-हाय न सह पाई,
सिमट गई वो मुँख छिपाई.
अब आने से डरती है वह,
जिसके कारण घुटती है वह.
प्रभाव उसका ऐसा पड़ा,
सब उलट-पलट गया.
विश्व में हंकार आया,
छल कपट और विनाश लाया.
खुशिया जिस धरती में थी,
अब बंजर पड़ गई है.
यदी बून्दो को आज़ाद ना किया,
तो सर्वनाश निश्चित है.
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