CLONED FROM: एक भीड़
एक भीड़ देखी मैने
कुछ लोग एक तरफ भाग रहे थे
मैं सोच मैं पड़ गई ऐसा क्या हुआ जो लोग भाग रहे है
भीड़ कुछ एक से लोगो की थी
गरीब निः वस्त्र बच्चो की थी
मैले कपड़े पहने आबरू को बचाए औरतों की थी
कुछ बूढ़े लोगो की तो कुछ अपंग लोगो की थी
शायद आपने भी देखी होगी ऐसी भीड़ कभी राह मैं चलते वक्त
हां जनाब बिलकुल सही सोचते है आप
वो भीड़ लाल बत्ती पर रहने वाले गरीबों की थी
ठंड मैं कापते जनता की थी
मैं जहा खुद को ढाके चार वस्त्रों मैं खड़ी थी
वहा वो बच्ची, हां वो छोटी सी बच्ची महज 1 साल की
एक फटे चादर मैं पड़ी थी
एक ओर इमारतें तो एक ओर झोपड़िया बनी थी
देख इन बड़ी बड़ी भवनों को
अकस्मक एक विचार आया
एक ओर विलासिता है, तो क्यों दूसरी ओर वैराग्य छाया
एक ओर लोग भरपूर है
तो क्यों दूसरे के तन पर पूर्ण वस्त्र भी न आया
जब मैं खड़ी हुई उस इमारत पर
तब मुझे समाज का दोहरा चेहरा नजर आया
एक स्त्री माटी ढोती तो दूसरी गाड़ी में जा रही थी
किसी के पैरो में चप्पल नसीब नही तो कोई हील्स में चल रही थी।
उन गरीब बच्चो का क्या जो अभाव के कारण पढ़ नहीं पाते है
और पूंजीपतियों के बच्चे लाखो उड़ाते है
एक वर्ग जो खाने के नाम पे वैराइटीज मांगते है
वही दुनियाभर मैं लाखो लोग भूख से मर जाते है
ये सब विचार करते करते एक आवाज आया
कुछ पैसे दे दो , बोलते एक बालक नजर आया
कितनी मासूमियत झलकती थी उस नन्हे से चेहरे पर
ऐसा लगा सूर्य की रोशनी से उस बालक पर मेरा वात्सल्य उमड़ आया
क्यों है इस समाज में इतनी असमानताएं
तरक्की के बाद भी गरीब गरीब ही कहलाए
हम सभी लोग हिंदुस्तानी है
फिर क्यों एक अमीर दूसरा गरीब कहा जाए।
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