हिंदी की महिमा
हर रंग मिले, हर सुमन खिले,
हिंदी वो फुलवारी है।
है भारत भूमि की आत्मा ,
हिंदी स्वदेश को प्यारी है।
मां गंगा है, गोदावरी है,
है यमुना, कृष्णा कावेरी है।
सतपुड़ा के घने जंगलों में,
मीठे पान की पनवाड़ी है।
उर्दू, बांग्ला की मौसी है,
बूआ कन्नड़ , मारवाड़ी है।
जितनी ये गुजराती है,
उतनी ही ये बिहारी है।
हिंदी सौ बोली की जननी है,
भाषाओं की पटवारी है।
है हर भाषा की स्नेहलता,
हिंदी स्वदेश को प्यारी है।
है आजादी का शंखनाद,
ये भगत,आजाद और गांधी है।
भारत की अमिट निशानी है,
ये टैगोर , सुवास की आंधी है।
गली बनारस वाली है,
या वृंदावन की लाली है।
मीरा रानी की भक्ति है,
राधा की कनबाली है।
है जनक सुता सी सुलोचना,
श्रीराम सी ये संस्कारी है।
माखनचोर की मस्ती है,
बांसुरी में लीन बनवारी है।
है अदभुत वैज्ञानिक व्याकरण,
है आर्यभट्ट के समीकरण,
शब्दो की ये जादूगरी,
कई विश्वयुद्ध पे भारी है ।
अविधा, लक्षणा,व्यंजना है
है संज्ञा, विशेषण ,सर्वनाम।
हो उपसर्ग, प्रत्यय या अलंकार,
पूर्णविराम या अल्प विराम।
हिंदी विद्वानों की भाषा है,
ये एक भारत की आशा है।
अंग्रजियत की तपती लहर में भी,
हिंदी गुड़ से बनी बतासा है।
ये पृथ्वीराज की है बहादुरी,
मुहम्मद गोरी की हताशा है।
हरिवंश राय की मधुशाला है,
हिंदी चौराहे का तमाशा है।
हिंदी है आशाओं का चंद्रयान,
है वीर शिवाजी का म्यान।
मीरा के विष का प्याला है
महाराणा का भारी भाला है।
विदेशी भाषाओं का मोहपाश,
कर रहा हमारी संस्कृति अपंग।
खुद झेल कई तैमूरलंग,
हिंदी ने हमको पाला है।
है प्रखर अटल बिहारी सा,
और चतुर चंदबरदाई सा।
हिंदी मुग्ध करे वृंदावन सा
हरिवंश की ये मधुशाला है।
वीर कुंवर से जा पूछो,
गंगा में क्यों रक्तदान किया।
पूछो जाकर अंग्रेजो से,
क्यों भारत मां का अपमान किया।
गर निज भाषा का सम्मान नहीं,
खुद की तुम्हरी पहचान नहीं।
तुम वीरों को भूल गए,
पशु हो तुम इंसान नहीं।
टप टप अंग्रेजी बोलोगे,
खुद को डालर में तोलोगे।
पर लौट के घर जब आओगे,
क्या सोना चांदी खाओगे।
हिंदी तहजीब की सागर है,
सुंदरवन की बहती गंगा है।
कवियों की है प्राणप्रिया,
पर्वत शिरोमणि कंचनजंगा है।
प्रेम मगन शृंगार भी है,
है वीर रस का तांडव कपाल।
तत्सम, तद्भव ,देशज, विदेशज,
हिंदी भारत की है द्वारपाल ।
हिंदी मिट्टी की बोली है,
ये अभिव्यक्ति की आजादी है।
आमोखास की साथी है,
दिल से दिल की चाभी है।
है प्रेमचंद का उपन्यास,
दिनकर की कविता भी है।
कबीर की अमृतवाणी है,
रविदास की अमर कहानी है।
तुलसीदास की मानस है,
कन्हैया की पावन गीता है।
जो रावण की भी हो ना सकी,
वो पतित पावनी सीता है।
शकुनी की इसमें प्रपंच नहीं,
हिंदी सौम्य सुमधुर कबीरा है।
है मंत्रमुग्ध रामायण सी,
ये प्रेम में पागल मीरा है।
हिंदी की अमिट रवानी है,
सदियों की यही जुबानी है।
दादी नानी की कहानी है,
जो नाती पोतों को सुनानी है।।
विश्व पटल पे छा जाए,
हिंदी की वो पहचान बनानी है।
हिंदी की यही कहानी है,
ये भारत की अमिट निशानी है।।
है हिंद प्रेम संकल्प यही ,
विश्वपटल के मानचित्र पे,
दुनिया के कोने कोने तक,
हमें मातृभाषा पहुचानी है।
हमें मातृभाषा पहुचानी है।।
कॉपीराइट – स्वदेश सुमन
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