भागती सुबहों में,
ढलती शामों में,
काली रातों में,
मुसलसल यहीं ख़याल आता है,
ख्वाबों की लंबी फ़ेहरिस्त का इक भी ख़्वाब पूरा होने के पहले, गर जो ज़िंदगी ने दग़ा दे दिया तो!
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भागती सुबहों में,
ढलती शामों में,
काली रातों में,
मुसलसल यहीं ख़याल आता है,
ख्वाबों की लंबी फ़ेहरिस्त का इक भी ख़्वाब पूरा होने के पहले, गर जो ज़िंदगी ने दग़ा दे दिया तो!
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