कदम रखना मजबूती से
मुश्किल है कितना हिलती राह पर I
पांव छू भर के भी बढ़ना
मुमकिन है कितना जलती राह पर II
अंगार को शीतल बना कर
चलना ही पड़ता है सबको I
भंगुर दशा स्थिर मना कर
जीना ही पड़ता है सबको II
जिंदगी के पथ को पढ़कर
अंजान होकर के भी बढकर I
मंज़िल के सुख की छाँव का भ्रम
सच है कितना ना पहुंचकर II
ये बहुत जटिल शतरंज है
हालात में कर्मों का रंज है I
सहसा ही है अज्ञ प्रतिबिम्ब
अभेद्य चक्रव्यूह सा भंज है II
संपूर्ण नियंत्रण की मिथ्या है
अगले ही पल संभ्रम है I
दार्शनिक को भी है पहेली
सुलझाना मुश्किल प्रक्रम है II
पव्य ग्रंथ के ज्ञान के संग
जब अनुभवों का पठन होगा I
सत्यता से अनुसरण ही
सतत निर्झर का घटन होगा II
स्थिर होगा जीवन मृत्युलोक में
आग शीतल माटी बन जाएगी I
चक्रव्यूह का भेद मिलेगा
खुशी सहपाठी बन जाएगी II
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