है मन्ज़िलों को पाना मैं जागता रहा हूँ
यूं रात रात उठ कर सपने सजा रहा हूँ।।
जाना जहाँ है मुझको तालीम के मुताबिक
मैं मंज़िलें भी अपनी पहचानता रहा हूँ।।
खोलो किवाड़ खोलो ऐ मन्ज़िलों के हमदम
रोको अगर तो रोको इस बार आ रहा हूँ।।
अनजान रास्तों से तन्हा सफ़र में चलकर
खुद्दार हौसलों का पैग़ाम ला रहा हूँ।।
मन में अगर दिखी जो इक स्याह शब ज़रा सी
बनकर मशाल उसको भी चीरता रहा हूँ।।
सीखा है जुगनुओं से हर रात में चमकना
ये सीख साथ लेकर मैं जगमगा रहा हूँ।।
–sudhir bamola
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