लघु कथा,’ रोशन हुई ज़िन्दगी’

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    8th December 2024 | 2 Views | 0 Likes

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    कुछ साल पहले की बात है। हम पति-पत्नी मुंबई जा रहे थे। ट्रेन में कोई ज्यादा भीड़ नहीं थी। रेलगाड़ी की खिड़की के पास बैठी वह मासूम -सी लड़की कुछ ज्यादा ही चहक रही थी। उसकी उम्र  लगभग बारह – तेरह साल  होगी।’भैया देखो तो नदी, कितनी लम्बी है न !’अपने पास बैठे मोबाइल पर व्यस्त अपने भाई से उत्साहित होकर वह बोली।’हां -हां , देख लिया।’ कहकर उसका भाई पुन: मोबाइल पर व्यस्त हो गया।वह लड़की फिर से खिड़की के बाहर का नजारा देखने लगी। जब भी उसे कुछ अच्छा दिखता, वहअपने साथ बैठे भाई व पिता को चहकते हुए बताती । बगल की सीट पर बैठे एक सज्जन पूछ बैठे, ‘लगता है बिटिया पहली बार ट्रेन में बैठी है।’ ‘नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं। दरअसल, मेरी बेटी की आंखों की रोशनी कुछ दिनों पहले ही लौटी है। जब वह पांच साल की थी, तभी इसे रतौंधी हो गया था। गांव में उचित इलाज नहीं मिलने  के कारण मेरी बेटी की आंखों की रोशनी चली गई ।एक भलमानस के बेटे की असमय मृत्यु हो गई। उनके बेटे के दान दी हुई आंखों ने आज मेरी बिटिया की जिंदगी को रोशन कर दिया । ईश्वर उनके बेटे  की आत्मा को शांति दे।’ कहते हुए उस लड़की के पिता भावुक हो गए। मैं भी भावुक हो गई। मासूम बच्ची के  उस साथ ने  सफर को यादगार बना दिया।

    कुछ साल पहले की बात है। हम पति-पत्नी मुंबई जा रहे थे। ट्रेन में कोई ज्यादा भीड़ नहीं थी। रेलगाड़ी की खिड़की के पास बैठी वह मासूम -सी लड़की कुछ ज्यादा ही चहक रही थी। उसकी उम्र  लगभग बारह – तेरह साल  होगी।’भैया देखो तो नदी, कितनी लम्बी है न !’अपने पास बैठे मोबाइल पर व्यस्त अपने भाई से उत्साहित होकर वह बोली।’हां -हां , देख लिया।’ कहकर उसका भाई पुन: मोबाइल पर व्यस्त हो गया।वह लड़की फिर से खिड़की के बाहर का नजारा देखने लगी। जब भी उसे कुछ अच्छा दिखता, वहअपने साथ बैठे भाई व पिता को चहकते हुए बताती । बगल की सीट पर बैठे एक सज्जन पूछ बैठे, ‘लगता है बिटिया पहली बार ट्रेन में बैठी है।’ ‘नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं। दरअसल, मेरी बेटी की आंखों की रोशनी कुछ दिनों पहले ही लौटी है। जब वह पांच साल की थी, तभी इसे रतौंधी हो गया था। गांव में उचित इलाज नहीं मिलने  के कारण मेरी बेटी की आंखों की रोशनी चली गई ।एक भलमानस के बेटे की असमय मृत्यु हो गई। उनके बेटे के दान दी हुई आंखों ने आज मेरी बिटिया की जिंदगी को रोशन कर दिया । ईश्वर उनके बेटे  की आत्मा को शांति दे।’ कहते हुए उस लड़की के पिता भावुक हो गए। मैं भी भावुक हो गई। मासूम बच्ची के  उस साथ ने  सफर को यादगार बना दिया

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    कुछ साल पहले की बात है। हम पति-पत्नी मुंबई जा रहे थे। ट्रेन में कोई ज्यादा भीड़ नहीं थी। रेलगाड़ी की खिड़की के पास बैठी वह मासूम -सी लड़की कुछ ज्यादा ही चहक रही थी। उसकी उम्र  लगभग बारह – तेरह साल  होगी।’भैया देखो तो नदी, कितनी लम्बी है न !’अपने पास बैठे मोबाइल पर व्यस्त अपने भाई से उत्साहित होकर वह बोली।’हां -हां , देख लिया।’ कहकर उसका भाई पुन: मोबाइल पर व्यस्त हो गया।वह लड़की फिर से खिड़की के बाहर का नजारा देखने लगी। जब भी उसे कुछ अच्छा दिखता, वहअपने साथ बैठे भाई व पिता को चहकते हुए बताती । बगल की सीट पर बैठे एक सज्जन पूछ बैठे, ‘लगता है बिटिया पहली बार ट्रेन में बैठी है।’ ‘नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं। दरअसल, मेरी बेटी की आंखों की रोशनी कुछ दिनों पहले ही लौटी है। जब वह पांच साल की थी, तभी इसे रतौंधी हो गया था। गांव में उचित इलाज नहीं मिलने  के कारण मेरी बेटी की आंखों की रोशनी चली गई ।एक भलमानस के बेटे की असमय मृत्यु हो गई। उनके बेटे के दान दी हुई आंखों ने आज मेरी बिटिया की जिंदगी को रोशन कर दिया । ईश्वर उनके बेटे  की आत्मा को शांति दे।’ कहते हुए उस लड़की के पिता भावुक हो गए। मैं भी भावुक हो गई। मासूम बच्ची के  उस साथ ने  सफर को यादगार बना दिया

    कुछ साल पहले की बात है। हम पति-पत्नी मुंबई जा रहे थे। ट्रेन में कोई ज्यादा भीड़ नहीं थी। रेलगाड़ी की खिड़की के पास बैठी वह मासूम -सी लड़की कुछ ज्यादा ही चहक रही थी। उसकी उम्र  लगभग बारह – तेरह साल  होगी।’भैया देखो तो नदी, कितनी लम्बी है न !’अपने पास बैठे मोबाइल पर व्यस्त अपने भाई से उत्साहित होकर वह बोली।’हां -हां , देख लिया।’ कहकर उसका भाई पुन: मोबाइल पर व्यस्त हो गया।वह लड़की फिर से खिड़की के बाहर का नजारा देखने लगी। जब भी उसे कुछ अच्छा दिखता, वहअपने साथ बैठे भाई व पिता को चहकते हुए बताती । बगल की सीट पर बैठे एक सज्जन पूछ बैठे, ‘लगता है बिटिया पहली बार ट्रेन में बैठी है।’ ‘नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं। दरअसल, मेरी बेटी की आंखों की रोशनी कुछ दिनों पहले ही लौटी है। जब वह पांच साल की थी, तभी इसे रतौंधी हो गया था। गांव में उचित इलाज नहीं मिलने  के कारण मेरी बेटी की आंखों की रोशनी चली गई ।एक भलमानस के बेटे की असमय मृत्यु हो गई। उनके बेटे के दान दी हुई आंखों ने आज मेरी बिटिया की जिंदगी को रोशन कर दिया । ईश्वर उनके बेटे  की आत्मा को शांति दे।’ कहते हुए उस लड़की के पिता भावुक हो गए। मैं भी भावुक हो गई। मासूम बच्ची के  उस साथ ने  सफर को यादगार बना दिया। 

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    वह लड़की फिर से खिड़की के बाहर का नजारा देखने लगी। जब भी उसे कुछ अच्छा दिखता, वहअपने साथ बैठे भाई व पिता को चहकते हुए बताती । बगल की सीट पर बैठे एक सज्जन पूछ बैठे, ‘लगता है बिटिया पहली बार ट्रेन में बैठी है।’

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