बाकी तस्वीर थी।
वो मुलाक़ात भी
खुशगवार थी,
जिसमें छुपी
प्यार की बात थी।
कभी शर्मो हया
तो कभी इंतज़ार की
बढ़ती बेसब्री थी,
जब बाकी
बस तेरी तस्वीर थी।
कभी तेरी तस्वीर से
कही बात थी
तो कभी तसवीर में डूबी
रात की चाँदनी थी।
फिर इंतज़ार की घड़ी
बढ़ती गई,
और इंतिहा प्यार की
शिकवों में घुलती गईं।
जब बाकी तेरी तस्वीर थी
कभी उससे लड़ाई की
तो कभी उसमें खोके
तन्हाई भुलाई।
देख के तस्वीर तेरी
कभी मोम सी पिघली
जब रोष की आग लगी
तो भी बाकी थी
तस्वीर तेरी
जो यादें बनके
मेरे साथ रहीं।
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