बचपन की यादें
सुनहरी धूप में, वो बचपन के दिन सुहाने,
मनमोहक सी गलियां, वो मीठे तराने।
खेल-खिलौने और गुड़ियों के घर,
खुशियों से भरपूर, किसी का भी नही था डर।
माँ की लोरियां, दादी की कहानियां,
ममता की छांव में वो मीठी मनमानियां।
पीपल की छांव और नदी का किनारा,
वो कागज की नाव और बारिश का नजारा।
पढ़ाई के डर से कहीं छुपकर बैठ जाना
पकड़े जाने पर बहाने हजार बनाना।
साइकिल की सवारी और पतंग की उड़ान,
मन में बसे अनगिनत सुनहरे अरमान।
खट्टी-मीठी टॉफियां, दशहरे का वो मेला,
रंग-बिरंगा वो बचपन का खेला।
ना थी चिंता, ना कोई फिक्र
परेशानियों का भी नही था जिक्र।
पलट कर देखूं तो याद बहुत आता है
बचपन का वो जमाना खुशियां दे जाता है
लौटकर नहीं आयेंगे बचपन के वो पल
कहता है ये जीवन, चल अब बस आगे चल।
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