अवधि – ||

    Boring Bird
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    13th November 2024 | 1 Views | 0 Likes

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    तुम भटके मन का भ्रम,

    तुम समस्त संसार का द्वेष,

    तूमसे भेंट हुए ही कइ बार?

    गीनने को हैं अंक विहीन, 

    सहज सिकुड़ी ही रह गई पंखुड़ियां गुलाब की। 

    तुम बिन चिंतित

    थे सब भाव,

    तुम बिन टटके 

    थे सब टीस।

    तुम बिन सूख गए थे सब जलप्रपात।

    सूने आंगन में पपिहे सी बोल पड़ी,

    तूमहारी हंसी थी सावन की 

    फुहार की तरह।

    कितनी पावक थी तूमहारी तृप्त मौन।

    किस पत्थर की धीर बन गई

    तूमहारी अव्यग्रता?

    किस प्राचीन शिल्प की मंजुलता बन गई

    तूमहारी सुहावन चेतना?

    कहां शून्य हो गई तूमहारी भूमंडलीय आवेग?

    अवधि तुम कहां हो? कैसी हो?

    किस वीरान राह को चली गई?

    एक ठूंठ से बिछङे  

    हरित बहार की तरह।

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