डाभ

    Boring Bird
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    13th November 2024 | 1 Views | 0 Likes

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    क्षणभंगुर में पार गया टाप को

    खाली छूटा बँसवारा आंखें लपकी 

    टपकी आ दर्भ ऊसर उर्वी पर

    पास ही पसरा है ढाभ को

    उपलों पे बसा सुकुरा गांठ उमगा 

    कहीं-कहीं पर क्यारी गया लांध

    दुव की नरम सीकें जाता चर गलाता 

    किसी आंगन के बाग को।

    दर्पंन-रूप कईयों के भाव का

    चिरैया का वन-बाग सा

    वीराने घाट का सहचर बना मित्र 

    समसान के आग को

    तरा तलइया के सिंच फल 

    चढ़ा सावन के नभ फिर आ गिरा

    भर-भर सरि-तल आतुर मिटाने

    सागर सी प्यास को।

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