वह कहते रहे हम सुनते रहे,
हर ताने से ऊपर उन्ही को चुनते रहे!
उनकी हर पाबंदी हमारे लिए सख़्त कानून था,
वह खुश है इस पाबंदी से बस इसी बात का सुकून था!
ना उनके सितम रुके ना हमने कभी हार मानी,
उनकी ज़िंदगी आबाद करते रहे खुद की कर के वीरानी!
ना उन में कोई रहम थी ना हमे कोई मलाल था,
सब कुछ अनदेखा कर गए आख़िर प्यार का जो सवाल था!
कहने को तो अपनी थी पर लगती थी पराई सी,
हमारी मुहब्बत उन नज़रों में लगती थी ठुकराई सी!
हमे भी कुछ गुमान था कि मुहब्बत का सहारा है,
जाने कैसे देख ना पाए वह मुहब्बत हीं आवारा है!
अब ना मुहब्बत बची ना कोई जज़्बात बचे,
और आगे बढ़ने के ना कोई खयालात बचे!
ख़ैर वह बातें और थीं वह रातें और थीं,
जिन्हे कभी भूल ना पाए वह मुलाक़ातें और थीं!
तब से ख़ुद में हीं मशरूफ हैं,
अपनी हीं परवाह करते हैं!
अब दुनिया की कोई फ़िक्र नहीं,
हम ख़ुद से मुहब्बत करते हैं!
– रोमी सिंह
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