चार दीवारी मै बैठे ना जाने क्यों ईन खयालोके परिंदो को पर नहीं छुटते…
ये खयाल भी शायद लफ्जो के इंतजार मै और गेहेराई से घुलनेकी ख्वाइश रखकर ईन कोरे कागज पर अपनी जगह बनाना चाहते है…
और शायद यही वजह है की मै, मेरे खयाल और ये लफ्ज एकदूसरे का साथ ही नहीं छोड़ते…
My Words..
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