चुन्नू मेरा दोस्त गौरया
रंग उसका भूरा मटमेला
सुबह सबेरे जब मैं जागू
चू चू करता खिड़की पे आता
जौ बाजरा जो भी मैं डालु
बड़े चाव से उसे वो खाता
मुझे जगाता मुझे रिझाता
प्रेम के दीपक चुन्नू खिलाता
कभी मुंडेर पे चड़के ची ची करता
कभी अपने दोस्तों को बुलाता
जमघट जो उनका लगता
सुमधुर गीत निखर आता
घर आँगन मानो दमकता
इनसे ही तो जीवन महकता
कभी अपने प्यारे पंखों से
मुझको पंखा वो झलता
चुन्नू मेरा दोस्त गौरया
रंग उसका भूरा मटमेला
जो न बोलो उससे मैं
करता फिर वो करतब खेला ।
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