तागा , तिनका में सिमटा संसार,
जीवन के भंवर का कैसे पाऊं पार,
एक तिनका हैँ आस का, थामें है जो जीवन को,
धीर बंधाता है जो प्रति पल , मेरे आकुल मन को,
एक तागा उम्मीदों का, बुनती हूँ हर पल ,जो
हैँ संजोये जो खुद में, मेरे सुनहरे कल को,
अपने मन की ये सौगात, करना चाहू खुद को उपहार,
देकर श्रीचरणों का आशीर्वाद, भर दो शक्तिहीन मेरे शब्दों में प्राण।
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