रजनीकर

    0
    0

    12th September 2024 | 4 Views | 0 Likes

    Info: This Creation is monetized via ads and affiliate links. We may earn from promoting them.

    Toggle

    Bxy1poaciaa9svxनशा नहीं मुझे मदिरा का मैं नैनों से पीता हूँ

    हाँ इन्हीं अँखियो के ज़रिये मैं तन्हा जी लेता हूँ,

    ना होते हुए भी सामने सर्वत्र उसे ही पाता हूँ

    बार हर बार मैं ग़लती यही दोहराता हूँ..

    चढ़ रहा है सुरूर खोके उसके ख्यालो में,

    डूब रहा हूँ मद में इन अनसुलझे सवालों में..

    जाने कैसे ज़ी लेता हूँ इन खामोश लम्हों में,

    गुज़र जाती है हर शाम बिना बोल के अल्फाज़ो में..

    ढाल के अपने अक्स को उसमें जब चकोर बन जाता हूँ,

    देखता हूँ उसे और उसमें एक रजनीकर को पाता हूँ!!

    You may also like