आस्था का महापर्व छठ और हम बिहारी – स्वदेश सुमन
मेरे एक मित्र ने मुझसे पूछा…
यार स्वदेश ये छठ पर्व क्या है?
क्यों तुम बिहारी दीवाने हो इस त्योहार के लिए?
अब उसे कैसे बताऊँ कि छठ हम बिहारियों के लिए सिर्फ एक पर्व नहीं,
दादी नानी का प्यार है..
भाई बेह्नो का संसार है…
पुरा गाँव एक परिवार है…..
स्वदेश के संस्कार है।
गँगा कि पावन धार है…
हर घाट का शृंगार है….
बचपन का वो दोस्त मिले ,
जो नदिया के उस पार है!!!!.
पटाखों कि दीवाली है…
और गँगा माँ की होली है…..
लिट्टी है चोखा है
गुब्बारे हैं….जलेबी है…..
समोसे है….दही भी है….
चंचल निर्मल सविता भी है,
बूढ़े बच्चे को मोह ले जो
स्वदेश की वो कविता भी है।l
गन्ने कि खेत है ,
नारीयल का पानी है..
सिँघारे का तलाब है!!
पडोसी गाँव ने जो ललकार दिया ,
उस कबड्डी का जवाब है !!!!
बुआ है मासी है….
दादी है और नानी है…
व्यायामशाला कि रैली है…..
बूढे बच्चो कि जवानी है….
नदियों का ठंडा पानी है….
नहरों किनारे दूरतलक….
नावों कि रेस लगानी है…
शेहरी जीवन कि भगदौड़ में….
पीपल कि छाँव पुरानी है!!!
शुध्द घी के प्रसाद हैं….
सूर्य देव आराध्य हैं…..
घाटों कि सफाई से शुरू…
हर गली नुक्कड़ का संगीत है…
हर बेटी का मायका है…
हर बच्चे का ननिहाल है…..
हर सुबह एक शुरुवात है..
हर शाम एक त्योहार है !!
मंदिर कि घंटी है ,
भाभी माँ का शृंगार है !!!!
बूढ़ी आँखो ने साल भर….
जो देखा था वो इंतजार है…..
फिर एक साल जो मिल न सकेगा…
वो एकजुट परिवार है !!
ये छठ का पावन त्योहार है ,
जिससे अपना परिवार जुड़े…
वो परम्परा हरबार है…
आओ फिर गाँव अब लौट चले..
बाबा कि आँखो में इंतजार है…
ये छठ का पावन त्योहार है !!!
ये छठ का पावन त्योहार है !!!!
छठ कि शुभकामनाओं एवम गाँव की सुनहरी यादों के साथ
-आपका स्वदेश सुमन
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