Thumbnail जैसी ज़िंदगी – इस कविता में उस धोखे की बात है, जो हम ख़ुद को रोज़ देते हैं, अंदर से ना सही, पर बाहर से सब सँवरा रहे, अंदर चाहे कुछ भी हो लेकिन Thumbnail गज़ब का होता है.
आँखें हैं सूझी सी,
कहा धुएँ का है खेल,
श..श.. जान न पाए कोई
दे दो हँसता हुआ ‘थंबनेल’
काजल के फैलने की कहानी रात की है
जो अंदर कहीं चुप है,
बात उस बात की है
थोड़ा सा यहाँ सिसकियों का भी है मेल
दे दो कोई चमकदार सा ‘थंबनेल’
बिखरे से बाल,
धीमी सी चाल,
न हुई आवाज़, न ही बवाल
जैसे हुई हो आरज़ूओं को जेल
दे दो कोई आज़ाद सा ‘थंबनेल’
आज थोड़ा हस भी लूँ
जज़्बात थोड़े कस लूँ
जैसे बसीं हैं मुझ में तमाम मुश्किलें
वैसे तुझ में बस भी लूँ
लेकिन कैसे खेलूँ झूठ का खेल
क्यूँ लगाऊं झूठा थंबनेल
Puneet Kaurr
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