ये जो तू भीड में दौड़ रहा है,
इसमे क्या कुछ तुझसे छूट गया है,
कुछ अपने पीछे छूट गए हैं,
कुछ तू खुद ही खुद से रूठ गया है|
इस जिंदगी की भाग-दौड़ ने,
देख तेरा क्या हाल किया है,
खुलकर जीने निकला था जो,
उसने ज़िम्मेदारियों के बोझ को थाम लिया है|
ख्वाहिशें तो दूर की बात है,
अब ज़रूरी भी पूरी होती कहा है,
इस जिंदगी की भाग-दौड़ में,
अब खुद से भी बातें होती कहा है|
अपनों के लिए निकला था,
अपनों से ही दूर हो गया,
इस जिंदगी की भाग-दौड़ में,
तू कितना मगरूर हो गया|
ये तू हम ही है,
हम ही इतने मजबूर हो गए,
अपनी चंद जरुरत के लिए,
अपनों से ही दूर हो गए||
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