रिश्तों की डोर ना बहुत कच्ची होती है
अक्सर बुरे वक्त में टूट जाती है
फिर जब इंसान संभाल जाए
अकेले रहना सीख जाए
उसके लिए रोना बन कर
कुछ हद तक उसे भूल जाए
तब फिर से उसमे गांठ बांध कर
उससे उसी बंधन में बंधने की कोशिश की जाती हैं
जो की सुई में कही न कही फस ही जाती है
सच में रिश्तों की डोर बहोत कच्ची होती है
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