उसने मुझे अपना दोस्त बनाया और मुझे खास होने का एहसास दिलाया ,
कभी मेरे साथ चलकर अपनापन दिखाया , फोन पे बात करके कभी मेरा मन बहलाया
जब भी उसने बात की ,हमेशा मुझे हसाया ।
मुझे खुशी हुई कि कोई तोह है , जो मुझे समझ पाया ।
मै खुश हुआ और मुस्कुराया , मैने उसमे अपना पन पाया।
पर हमारी दोस्ती का सिलसिला चल नहीं पाया , किसी तीसरे ने हमारे बीच टांग अड़ाया ,
हम दोनो को एक दूसरे से दूर करवाया
मुझे दोस्ती पे भरोसा था , पर उसके प्यार के आगे दोस्ती टिक ना पाया ,
जिसे मैं दोस्ती के नशे में अपना समझ बैठा था , उनसे किसी और को अपना बताया
मै चुप चाप सुनता रहा मै कुछ बोल नहीं पाया , क्योंकि गलती तो मेरी थी जो मैंने उसे अपना राज बताया ।
हमारी दोस्ती भी कुछ खास थी ,
ना वो मुझे भूल पाई ,ना मै उसे भूल पाया
एक दूसरे के करीब होते हुवे भी कुछ नहीं बोल पाए ,
दोस्ती अंजान से हुई , अंजान बनकर रह गए।
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