दिल की तहों में दबी कुछ ख़्वाहिशें थीं, बिना आवाज़ के भी चीख़ती रहीं। टूटी नहीं, बिखरी नहीं वक़्त के साथ, बस चुपचाप रोशनी बोती रहीं।
हर आँसू में इक सपना चमकता रहा, हर ख़ामोशी में इक नग़मा बजता रहा। लोग समझे थक कर रुक गया हूँ मैं, पर मेरे अंदर तो समंदर मचलता रहा।
ख़्वाहिशें भी अजीब होती हैं यारों, पूरी न होकर भी जीने का हौसला दे जाती हैं, हर टूटे सपने की किरचियों में भी, नई सुबह का रास्ता दिखा जाती हैं।
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