अपनी ही धुन में
अपनी ही धुन में मैं खोई रहती हूं
कोई कुछ कहे तो सोचती रहती हूं
सपनों में ही मैं डूबी रहती हूं
पता नहीं क्यूं ख्याली पुलाव पकाती हूं
अपनी ही धुन में मैं खोई रहती हूं
कोई कुछ बोले तो मैं रोती रहती हूं
पता नहीं क्यूं इतना मैं दिल से लगाती हूं
कोई जो हंसे तो मैं हंस देती हूं
सबकी ख़ुशी में खुश मैं हो जाती हूं
कोई उदास हो तो मैं मना लेती हूं
कुछ सीखने की कोशिश मैं करती रहती हूं
ख्यालों के परिंदे मैं उड़ाती रहती हूं
अपनी ही धुन में मैं खोई रहती हूं
किसी ने मुझे इतना क्यूं बोला
किसी ने मुझे इतना क्यूं रूलाया
मुझे कुछ कहके उनको क्या मिलेगा
मुझे रूलाकर उनको क्या मिलेगा
पता नहीं क्यूं मैं सोचती रहती हूं
लोगों की बातें पर क्यूं गौर करती हूं
सबको खुश रखने की मैं सोचती रहती हूं
अपनी ही धुन में मैं खोई रहती हूं
मैं ये करूंगी लोग क्या कहेंगे
मैं वो करूंगी लोग क्या सोचेंगे
ऐसा क्यूं मैं सोचती रहती हूं
लोगों की परवाह मैं क्यूं करती हूं
अपने ही काम में मगन मैं रहती हूं
बिना परवाह के मैं क्यूं ना जीती हूं
क्यूं इतना सोचती मैं रहती हूं
अपनी ही धुन में मस्त रहती हूं
अपनी ही धुन में खोई रहती हूं
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