जब घर से निकले
मंज़िल ढूँढने,
तो हाथ में थे
बस चंद सिक्के
गुज़ारे के लिए ।
था जोश और जज़्बा
तो कहाँ था रुकना,
फिर तो था
मंज़िल का
रास्ता तय करना।
जब घर से निकले
मंज़िल ढूँढने,
तो हाथ में थे
बस चंद सिक्के
गुज़ारे के लिए ।
था जोश और जज़्बा
तो कहाँ था रुकना,
फिर तो था
मंज़िल का
रास्ता तय करना।
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