सूर्यपुत्र कर्ण
जन्म देते ही माता ने जिसको
नदी में था छोर दिया,
समाज में लाज बचाने खातिर
पुत्र से नाता तोड दिया।
रथ चालक ने गोद लिया
घर अपने उसको ले आया,
राधा मां का प्यार पाकर
राधेये फिर वो कहलाया।
धनुर्विद्या सिकने की उसने
इच्छा अपनी बतलाई,
गुरु द्रोण के समक्ष पहुंचकर
झोली अपनी पशराई।
गुरु द्रोण प्रसन हुए
राधेये का कौशल पहचाना,
देख सूर्य का तेज़ माथे पर
कर्ण नाम उसे दे डाला।
पर विद्यादान नही दे सकते
उनकी भी मजबूरी है,
गुरुकुल में बस राजपुत्रो को
आने की मंजूरी है।
ब्राह्मण वाला भेस बनाकर
परशुराम का शिष्य बना,
सीखकर धनुर्विद्या उसने
ख्वाब अपना पूर्ण किया।
पेड़ के नीचे कर्ण बैठा था
गुरुवर गोद में सोए थे,
कर्ण उन्हें देख रहा
वो गहरी नींद में सोए थे।
कर्ण के पाव में कीड़े ने
विश अपना घोल दिया,
कर्ण के पाव से लहू का
रास्ता बाहर खोल दिया।
सहता रहा कर्ण पीड़ा को
गुरु की निद्रा भंग न की,
लहू के ताप से परशुराम की
निद्रा आखिर टूट गई।
देख कर्ण को खून से लथपथ
आशचर्य गुरुवर रह गए,
ब्राह्मण के सहनशीलता को देखकर
सोच में ही पर गए।
समझे की ये क्षत्रिय है
विश्वासघात इनके साथ किया,
साप के बंधन में,कर्ण को
परशुराम ने बांध दिया।
रंगभूमि में उसने ही तो
अर्जुन को था ललकारा,
सूतपुत्र कह रंगभूमि में
सबने उसको धूतकारा।
दुर्योधन ने फिर साथ दिया
कर्ण को अपना मित्र कहा,
अंग देश का राजा बनाकर
उसको अपना ऋणी किया।
पर दानवीर है कर्ण बड़ा
नही ऐसे कुछ भी ले लेगा,
अब कर्ण दुर्योधन खातिर
प्राण भी अपने दे देगा।
लक्ष्य जीवन का यही कर्ण का
अर्जुन को परास्त करे,
दुर्योधन का छाया बनकर
हमेशा उसके साथ चले।
केशव बोले कर्ण से की
तुम महारथी और वीर बड़े हो,
धर्मपालन के प्रतीक हो तुम
फिर क्यों अधर्म के संग खड़े हो।
कौशल तुम्हारी ऐसी है की
किसी से हार न सकते हो,
दुर्योधन का शिविर अगर छोरो
त्रिलोक विजयी बन सकते हो।
फिर केशव ने कर्ण से कुछ
ऐसे तिंखे प्रश्न किए,
पूछे की परिचय दो अपना,
तुम आखिर कैसे जन्म लिए।
कर्ण के मुख के एक भी
शब्द नही निकलते थे ,
आंसू आंख भींगते बस
बाहर नहीं छलकते थे।
राज बताया कृष्ण ने कि
सुत नही क्षत्रिय हो तुम,
सूर्यदेव है पिता तुम्हारे
राधेये नही कौंतये हो तुम।
ये सुनते ही कर्ण के
पैरो से भूमि सरक गई,
पता चला पांडव है भाई
ह्रदय में सांसे अटक गई।
कर्ण चालो तुम साथ मेरे
मैं तुमको राजा बानवादू,
पार्थ सारथी हो तुम्हारा
ममता का स्वाद भी चखवादू।
नही कोई और सीमा होगी
बस तुम्ही राजा कहलाओगे,
पांच भाईयो का साथ पाकर
त्रिलोक धनी हो जाओगे।
कर्ण कहा डगमगाने वाला
वो प्रण नही कभी तोड़ेगा,
दुनिया आ जाए कदमों में पर
दुर्योधन को ना छोड़ेगा।
त्याग देखकर कर्ण का
केशव की आंखे भर आई,
कर्ण जैसा दानवीर फिर
और ना होगा कोई।
युद्ध की जब ठहर गई
कुंती का हृदय चिंतित था,
चेहरे से हंसी तो चली गई
आंखों से नींद भी वंचित था।
पुत्र मोह के कारण
कुंती कर्ण के पास गई,
बोली की मेरे साथ चलो
युद्ध से कोई लाभ नहीं।
कर्ण बोले,
साथ नही आऊंगा पर मां,
इतना यकि दिलाता हूं,
पांच पुत्र जीवित लौटेंगे,
ये विश्वास दिलाता हूं।
और इंद्र देव जो मांग दिए
तो कवच कुंडल भी दे दूंगा,
अर्जुन वध करूंगा या
फिर
वीरगति खुद ले लूंगा।
दानवीर के जीवन को
भला कौन भूल ही पाएगा,
जब जब याद करेगा उसको
उसकी ही जय दुहराएगा।।
आदर्श तिवारी
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