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मैं कविता कह रहा हूँ- 2

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जीवन की खेती में मेहनत का हल चला रहा हूँ 
मैं कविता कह रहा हूँ
भूख, प्यास, हिम्मत, जज्बे की इसमें खाद मिला रहा हूँ 
क्या मैं बस कविता कह रहा हूँ ?
आईने में बढ़ती झुर्रियों से नजर चुरा रहा हूँ
जिम्मेवरियों का हर कदम बढ़ता बोझ उठा रहा हूँ 
बेटा था अब तक मैं , अब पिता बन रहा हूँ 
खुद के पिता को अब समझ रहा हूँ
नहीं, मैं सिर्फ कविता नहीं कह रहा हूँ 
जिंदगी को बा-लफ़्ज़े हर्फ़ बता रहा हूँ 

SHASHI BALISHTHLast Seen: Apr 5, 2023 @ 11:34am 11AprUTC

SHASHI BALISHTH

SHASHI-BALISHTH





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