मैं कविता कह रहा हूँ
असमंजस कश्मकश सब सह रहा हूँ
मैं कविता कह रहा हूँ
एहसासो को लफ्ज़ो में बयां कर रहा हूँ
मैं कविता कह रहा हूँ
शब्दों को मोतियों के धागे में पिरोने की कह रहा हूँ
मैं कविता कह रहा हूँ
तृष्णा, प्रेम , इच्छा , क्रोध, सबके बीच रह रहा हूँ
मैं कविता कह रहा हूँ
निःस्वार्थ की अग्नि में सब भाव जला रहा हूँ
मैं कविता कह रहा हूँ
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