पैसे की भूख है बड़ी ही निराली
जिसको लग जाए एक बार,
वो सब कुछ पाकर भी हो जाता है खाली
लगता है ये भूक मुझे भी सताने लगी है
इसीलिये आज कल हेयरन परशान सा रहने लगा हूं,
असूल दागमगने लगे हैं मेरे इस जमाने के तौर तारिकों में
डर लगता है कहीं खुद को पाने की तलाश में, खुद को ही ना खो बैठूं
नई पहचान की दौड़ में पुरानी को ही ना छोड़ बैठूं
नए नाम की भूख में कहीं पुराने असूलों को ही ना भूल जाऊं
इन भूक और असूलों के चुनाव में कहीं खुशियों को ही न भूल जाऊं।
-Aapkakavii