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ऐसी काई है अब मकानों पर धूप के पांव भी फिसलते हैं.. 

    Kridha Garg
    @Kridha334
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    9 Likes | 11 Views | May 20, 2025

    ऐसी काई है अब मकानों पर
    धूप के पांव भी फिसलते हैं

    दीवारों पर यादों की परतें
    धीरे धीरे सब कुछ ढंकते हैं

    रंग उड़ा है, कहानी खोई
    वक़्त की मार ने सब कुछ धोई

    खिड़कियाँ हैं उदास सी कुछ
    जैसे पूछें, "क्या रहा अब कुछ? "

    आँगन में सन्नाटा गहरा
    पंछियों का भी नहीं है बसेरा

    ऐसी काई है अब मकानों पर
    धूप के पांव भी फिसलते हैं.. 

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