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ढलती शाम

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    4 Likes | 2 Views | May 7, 2025

    जैसे-जैसे शाम ढलती है,

    एक उदासी सी छा जाती है।

    दिन भर की भाग-दौड़ के बाद,

    मन एक खालीपन पाता है।

    सूरज की सुनहरी किरणें अब,

    धीरे-धीरे मद्धम पड़ती हैं।

    रंगों की वो जगमगाहट भी,

    अब धुंधली सी लगती है।

    पंछी भी लौट चले हैं घर को,

    एक सन्नाटा सा पसरता है।

    अनकहे कुछ ख़याल मन में,

    धीरे-धीरे उभरता है।

    यह उदासी नहीं है बोझ कोई,

    यह तो दिन भर की थकान है।

    शांत मन से मिलने का यह,

    शायद एक प्यारा सा बहाना है।

    कल फिर एक नया सवेरा होगा,

    नई उम्मीदें लेकर आएगा।

    यह ढलती शाम तो बस,

    आने वाले कल की एक आहट है।