एक फूल खिला था बागों में कभी,
रंग उसका सुनहरा, खुशबू अनोखी थी।
एक भोला सा पंछी, उड़ता हुआ आया,
उस फूल की सुंदरता पे, दिल उसका लुभाया।
दोनों में प्रीत जगी, एक मीठा सा बंधन,
जैसे दो किनारों का, होता है समर्पण।
दिन हँसी में बीते, रातें तारों भरी,
एक इश्क़ की दुनिया थी, सपनों से सजी।
फिर काली घटाएँ घिर आईं अचानक,
तूफ़ान उठा ऐसा, टूटा हर एक बंधन।
वो पंछी अकेला, उड़ गया कहीं दूर,
फूल मुरझा गया, सह न सका वो क्रूर।
अब बाग़ उदास है, वो रंग भी नहीं है,
उस मीठी सी कहानी का, अब अंत कहीं नहीं है।
हर पत्ती पे लिखी है, एक दर्द भरी दास्तान,
एक इश्क़ की कीमत, एक अनमिट सा ग़म।
कभी जो हँसी थी, अब आँसू बनके बहती है,
उस अधूरे से रिश्ते की, कसक दिल में रहती है।
ये कैसी मोहब्बत थी, जो दे गई इतना दर्द,
एक इश्क़ के बदले में, मिला जीवन भर का ग़म।
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