ख्वाइशें भी
कमाल करती हैं,
कभी तो बनती हैं
तो कभी बिगड़ती हैं
कभी बनाती हैं,
तो कभी बिगाड़ देती हैं।
कभी अच्छाई सिखाती हैं
तो कभी बुराई से मिलाती हैं,
कभी सच्ची बातें कराती हैं
तो कभी झूठ में शामिल कराती हैं।
कभी सौगात सी दिखती हैं,
तो कभी बुरी आदत सी पलती हैं
कभी सपनों से मुलाक़ात कराती हैं,
तो कभी हार से डराती हैं,
कभी खिली मुस्कान दिलाती हैं
तो कभी गम में डूबाती हैं।
ये ख्वाइशें ही तो हैं
जो कभी निराशा मिटाती हैं,
तो कभी हताश कर जाती हैं
कभी इंसान बनाती हैं
तो कभी इंसानियत भुला देती हैं।
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