ये ज़िंदगी भी कैसी पहेली है,
कभी हंसाती तो कभी रुलाती अकेली है।
हर राह पर एक अनजाना सा गम है,
खुशियों की तलाश में, आँखें हमेशा नम हैं।
उम्मीदों के दिए भी बुझने लगे हैं धीरे-धीरे,
जैसे कोई अपना ही छोड़ गया हो किनारे पे।
इस उदासी के आलम में, क्या कहें किसी से,
भीतर की ये ख़ामोशी, अब तो सहना ही है जैसे।
माना कि ये उदासी गहरी है बहुत,
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