अब कहाँ ये मन एक जगह ठहरता है,
अब कहाँ ये बाग परिंदों से चहकता है,
खुद में उलझा ये मन खुद से ही मुकरता है,
अब कहाँ ये सफ़र सुकून से गुजरता है।।
#poetry "Ritu"
अब कहाँ ये मन एक जगह ठहरता है,
अब कहाँ ये बाग परिंदों से चहकता है,
खुद में उलझा ये मन खुद से ही मुकरता है,
अब कहाँ ये सफ़र सुकून से गुजरता है।।
#poetry "Ritu"
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