पहलगाम।

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    0 Likes | Views | Apr 28, 2025

    कहाँ सोचा होगा किसी ने

    जो देखने गए थे प्रकृति,

    उनको घूमने भर की

    इतनी बड़ी सज़ा मिलेगी।

    मुसाफ़िर तो थे

    जो आंनद के लिए आए,

    पर मंज़िल उनकी

    धर्म की आग में जल गई।

    वक्त की दयार थी

    और साज़िशों की मार थी,

    हया की सुगबुगाहट में

    बेशर्मी पुर ज़ोर थी।

    कभी बयानों में

    तो कभी हरकतों में दिखी,

    हर वो बात जो

    हृदय को चीर देने वाली थी।

    धर्म को बनाकर हथ्यार

    कर दिया मानवता पे वार,

    और इंसानियत हर बार

    शर्मसार होती रही।