Creation 780974

    Parth Sharma
    @Parth-Sharma
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    0 Likes | Views | Apr 27, 2025

    "धरती का सपना"

    कल रात धरती ने सपना देखा,

    खुद को नीला और हरा देखा।

    न गाड़ियाँ थीं, न धुआँ कोई,

    हर साँस में बस हवा बह रही थी खोई-खोई।

    बच्चों के हाथों में फूल थे,

    मोबाइल नहीं, बस मिट्टी के उसूल थे।

    नदियाँ गा रही थीं लोरी,

    चाँदनी बाँध रही थी रोशनी की डोरी।

    पर तभी —

    एक शोर आया... कचरे का, ट्रैफिक का,

    और धरती चौंककर उठ बैठी,

    सपना टूट गया,

    और फिर से शोर ने उसे लूट लिया।

    > पर एक पत्ता फड़फड़ाया,

    एक बीज मुस्कराया,

    धरती ने धीरे से कहा —

    "सपने फिर आएँगे,

    अगर तुम जग जाओगे।"