हाँ पता है, कि हम मारे जाएंगे,
ख़ुद अपनी क़ब्र तक बेसहारे जाएंगे,
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वो कंधे भी घर के ही होंगे चारों,
जिन पर रखकर फिर हम उतारे जाएंगे,
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समंदर की पहुँच की औक़ात ही नहीं अब,
किसी गंदे सन्दे तालाब के किनारे जाएंगे,
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कल का परचम तो मेरा अब तक ज़िंदा रहा,
कल क्या होगा, क्या हम पुकारे जाएंगे?
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वो चीख़ना-चिल्लाना तो होगा ही, समझो,
मेरी मौत में झूठे नज़ारे आएंगे,
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ध्यान रखना ये सब शेर हैं भूखे,
इमरती के लिए रुमाल पसारे जाएंगे,
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अमा हमें क्या-किससे करना, क्या करना, क्यों करना,
आज हम जाते हैं, कल तुम्हारे जाएंगे....................
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