के ज़माने भर से हमारी कितनी रंजिशें हैं,
तुम्हारी याद में अधूरी कितनी बंदिशें हैं,
इन्हें पूरा करने की कितनी वरजिशें की मैंने
मगर तुम्हारे बिन अधूरी ये बंदिशें हैं
के ज़माने भर से हमारी कितनी रंजिशें हैं,
तुम्हारी याद में अधूरी कितनी बंदिशें हैं,
इन्हें पूरा करने की कितनी वरजिशें की मैंने
मगर तुम्हारे बिन अधूरी ये बंदिशें हैं
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